पुलिस की तमाम कोशिशें फेल हो रही थीं, हत्यारा आजाद घूम रहा था। किसी सूत्र की तलाश में विराट राणा और सुलभ जोशी भागे भागे फिर रहे थे। जो सामने था वह सिवाय प्रेतलीला के और कुछ नहीं दिख रहा था, जबकि उनका मन उस बात को कबूल करने को तैयार नहीं था। एक तरफ पापियों को इंटेरोगेट कर पाना नामुमकिन नजर आ रहा था, तो दूसरी तरफ केस को सॉल्व करने के लिए उनपर तगड़ा दबाव बनाया जा रहा था। हद तो तब हो गयी जब बाकी बचे पापियों में से दो और लोग पिशाच का शिकार बन गये। एक अबूझ पहेली जो लगातार उलझती जा रही थी।